ज्ञान एवं पाठ्यक्रम
Knowledge and Curriculum
विषय | ज्ञान एवं पाठ्यक्रम |
Subject | Knowledge and Curriculum |
Gyaan evan Paathyakram | |
Course | B.Ed 1st Year Semester-2 |
Code | 201 |
University | VBSPU JAUNPUR (UP) and Other |
AB JANKARI इस पेज में वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय बी. एड. प्रथम वर्ष (द्वितीय सेमेस्टर) : प्रथम प्रश्न-पत्र (201) "ज्ञान एवं पाठ्यक्रम नोट्स" , ज्ञान एवं पाठ्यक्रम असाइनमेंट ,ज्ञान एवं पाठ्यक्रम प्रश्न-उत्तर को शमिल किया गया है |
खण्ड-अः अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
(Section - A Very Short Answer Type Questions)
निर्देश : इस खण्ड में प्रश्न संख्या 1 (iसेx ) अतिलघु उत्तरीय प्रश्न है। परीक्षार्थियों को सभी 10 प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न के लिए 2 अंक निर्धारित हैं। (10 x 2 = 20 अंक)
(01) प्रश्न स्टेनली लिस्बन द्वारा प्रस्तावित मापदण्ड बताइए। ?
(01) प्रश्न स्टेनली लिस्बन द्वारा प्रस्तावित मापदण्ड बताइए। |
प्रश्न i (a) स्टेनली लिस्बन द्वारा प्रस्तावित मापदण्ड बताइए।
उत्तर- स्टेनली लिस्बन ने दो मापदण्ड दिए हैं-
(अ) पर्यावरण समायोजन
(1) कौशल
(3) गृह सदस्यता
(5) अवकाश
(7) व्यक्तिगत विकास
(9) सामाजिक विकास
(11) बौद्धिक विकास
( ब ) व्यक्तिगत विकास
(2) संस्कृति
(4) व्यवसाय
(6) सक्रिय नागरिकता
(8) सौंदर्य बोधात्मक विकास
(10) आध्यात्मिक विकास
(12) नैतिक विकास ।
प्रश्न i (b) व्हीलर द्वारा प्रस्तावित मापदण्ड बताइए ।
उत्तर-
व्हीलर द्वारा प्रस्तावित दो मापदण्ड हैं-
(क) मुख्य मापदण्ड - इसके अंतर्गत - वैधता तथा महत्त्व |
(ख) गौण मापदण्ड - शिक्षार्थी की आवश्यकताएँ एवं अभिरुचियाँ, उपयोगिता तथा अधिगम योग्यता ।
प्रश्न i (c) पाठ्यक्रम पर शिक्षक के कार्य बताइए ।
उत्तर-
प्रश्न v (b) पाठ्यक्रम व पाठ्यवस्तु में अंतर बताइए ।
अथवा
पाठ्यक्रम एवं पाठ्यचर्या में अन्तर ।
उत्तर-
पाठ्यक्रम व पाठ्यवस्तु के इसी अन्तर को एक विद्वान ने भिन्न दृष्टि से प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार, “पाठ्यवस्तु पूरे शैक्षिक सत्र में विभिन्न विषयों में शिक्षक द्वारा छात्रों को दिये जाने वाले ज्ञान की मात्रा के विषय में निश्चित जानकारी प्रस्तुत करता है जबकि पाठ्यक्रम यह प्रदर्शित करता है कि शिक्षक किस प्रकार की शैक्षिक क्रियाओं के द्वारा पाठ्य-वस्तु की आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा। दूसरे शब्दों में पाठ्यवस्तु शिक्षण की विषय-वस्तु का निर्धारण करता है तथा पाठ्यक्रम उसे देने के लिए प्रयुक्त विधि ।”
प्रश्न v (c) पाठ्यक्रम के प्रकार बताइए ।
उत्तर-
पाठ्यक्रम के निम्न प्रकार हैं-
(1) बाल केंद्रित पाठ्यक्रम,
(2) क्रियाकेंद्रित पाठ्यक्रम,
(3) कोर पाठ्यक्रम ।
प्रश्न v (d) पाठ्यक्रम के आधार बताइए ।
उत्तर-
(1) पाठ्यक्रम के दार्शनिक आधार,
(2) सामाजिक आधार,
(3) मनोवैज्ञानिक आधार,
(4) वैज्ञानिक आधार ।
प्रश्न v (e) पाठ्यक्रम के सामाजिक आधार बताइए ।
उत्तर-
वर्तमान समय में जनतन्त्रीय प्रणाली का प्रचलन होने से पाठ्यक्रम पर भी सामाजिक आधार पर बहुत बल दिया जाता है तथा पाठ्यक्रम में उन विषयों एवं क्रियाओं को स्थान देने की बात कही जाती है जो छात्र में सामाजिकता की भावना का विकास करें। इस दृष्टि से पाठ्यक्रम में भाषा, इतिहास, साहित्य, समाजशास्त्र, भूगोल व नीतिशास्त्र को स्थान दिया जाता है। सामाजिक आधार पर संगठित पाठ्यक्रम मुख्य रूप से सामाजिकता की भावना पर आधारित होता है
प्रश्न v (f) पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत लिखिए।
उत्तर-
(1) जीवन से संबंधित होने का सिद्धांत ।
(2) शैक्षिक उद्देश्यों से अनुरूपता का सिद्धांत ।
(3) बाल केन्द्रित शिक्षा का सिद्धांत ।
प्रश्न vii (f) विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम।
अथवा
विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम क्या है?
उत्तर-
एरम्परागत उपागम के अंतर्गत विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम आता है जिससे पाठ्यक्रम के स्वरूप में विषय वस्तु को अधिक महत्त्व दिया जाता है। इसमें अध्यापक का शिक्षण पाठ्यक्रम तक ही सीमित रहता है। वह पाठ्यक्रम के अलावा छात्रों को कोई और ज्ञान देना उचित नहीं समझता है वह छात्र के केवल ज्ञान भण्डार को बढ़ाने पर ही ध्यान केंद्रित करता है, भले ही उस ज्ञान का छात्र के जीवन में कोई उपयोगिता हो या न हो।
प्रश्न vii (g) अनुशासन केंद्रित पाठ्यक्रम की परिभाषा बताइए ।
उत्तर--
वस्तुओं तथा घटनाओं के किसी विशिष्ट क्षेत्र सम्बन्धी ज्ञान के संगठन को अनुशासन कहा जाता है। इन वस्तुओं तथा घटनाओं के अन्तर्गत वे तथ्य, प्रदत्त, पर्यवेक्षण, अनुभूतियाँ आदि भी सम्मिलित रहती हैं जो उस ज्ञान के आधारभूत घटकों को निर्मित करते हैं। कोई ज्ञान किसी अनुशासन के क्षेत्र में आता है या नहीं, इसका निर्धारण करने के लिये आधारिक नियम एवं परिभाषाएँ निर्मित कर ली जाती हैं।
प्रश्न vili (a) अनुशासन की विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर-
(i) प्रत्येक अनुशासन की एक मान्य संरचना होती हैं।
(ii) उसकी अपनी विषय-वस्तु होती है तथा उसमें नवीन ज्ञान को समाहित करने ( अर्थात् उसके विस्तार क्षेत्र में वृद्धि करने, उसे और अच्छा बनाने, अधिक वैध बनाने) के सम्बन्ध में निश्चित नियम होते हैं !
(iii) प्रत्येक अनुशासन का अपना इतिहास एवं परम्पराएँ होती हैं तथा यही बातें उसकी संरचना करने तथा उसके नियमों के निधारण के लिये उत्तरदायी होती हैं।
(iv) प्रत्येक अनुशासन की अपनी अध्ययन एवं अनुसंधान विधियाँ होती हैं।
(v) प्रत्येक अनुशासन का अपना मूल्य एवं चिन्तन क्षेत्र होता है।
प्रश्न viii (b) अनुशासन केंद्रित पाठ्यक्रम की सीमाएँ बताइए ।
उत्तर-
(i) मानव ज्ञान के विशाल भण्डार तथा समय की सीमा को देखते हुए पाठ्यक्रम ज्ञान के सभी प्रमुख उप-खण्डों को समाहित कर सकना सम्भव नहीं है। अतः इसके दो विकल्प दिखाई पड़ते हैं। या तो चयन प्रक्रिया के माध्यम से कुछ उप-खण्डों को छोड़ दिया जाये और कुछ को सम्मिलित किया जाये अथवा उन्हें व्यापक क्षेत्रीय (मिश्रित) इकाइयों में व्यवस्थित किया जाये। स्पष्ट है कि अनुशासन- केन्द्रित आन्दोलन से पूर्व भी यही कार्य किया जा रहा था जिस पर इस आन्दोलन के कर्णधारों ने विषयों में छिछलापन लाने का दोषारोपण किया।
प्रश्न viii (d) व्यवहारवादी उपागम क्या है?
उत्तर-
व्यवहारवादी उपागम।
पाठ्यक्रम के इस उपागम का आधार व्यावहारिक मनोविज्ञान है। इसमें शैक्षिक उद्देश्यों पर अधिक बल देते हुए पाठ्यक्रम के प्रारूप को विकसित किया जाता है। छात्रों के अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन के रूप में उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है। इसे व्यवहार का व्यवहारवादी उपागम कहते हैं।
प्रश्न viii (e) दबे समिति ने प्राथमिक कक्षाओं के लिए भाषा में किन दक्षताओं को बताया है?
उत्तर-
प्रश्न vili (g) न्यूनतम अधिगम स्तर किसे कहते हैं?
उत्तर-
प्रारम्भिक शिक्षा में सभी बच्चों द्वारा दक्षताओं को पारंगतता के स्तर तक प्राप्ति को न्यूनतम अधिगम स्तर (M.L.L.) कहते हैं।
प्रश्न ix (a) संरचनावादी उपागम।
उत्तर-
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अर्थ ऐसी शिक्षा से लगाया जाता है जो रटने से दूर जाती है। अच्छी व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए केवल पाठ्यक्रम में कुछ नवाचारों का समावेश करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि ज्ञान को भाँति प्रकार से समझना तथा उसे प्रदान करना ही संरचनावादी उपागम है ।
प्रश्न ix (b) क्रिया केंद्रित पाठ्यक्रम क्या है?
उत्तर-
जॉन डी.वी. के अनुसार, “क्रिया केंद्रित पाठ्यक्रम बालक की क्रियाओं की सतत् प्रभावित होने वाली धारा है जिससे व्यवस्थित विषयों में कोई व्यवधान नहीं आता तथा जो बालकों की रुचियों तथा अनुभूत व्यक्तित्व आवश्यकताओं से उदित होती है । "
प्रश्न ix (c) क्रिया- केंद्रित पाठ्यक्रम के गुण बताइए ।
उत्तर-
(i) यह बालक की मानसिक प्रवृत्तियों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। यह मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित होता है ।
(ii) छात्रों में शारीरिक श्रम के प्रति सकारात्मकता की भावना विकसित होती है।
प्रश्न ix (d) कार्य आधारित पाठ्यक्रम।
उत्तर-
कोठारी आयोग के अनुसार, “ कार्य आधारित इस पाठ्यक्रम में विभिन्न विषयों, क्रियाओं तथा कार्य को इस प्रकार से व्यवस्थित तथा संगठित किया जाता है कि छात्र निर्धारित शैक्षिक साध्यों तथा लक्ष्यों को प्राप्त कर सके। अतः इसे कार्य आधारित पाठ्यक्रम कहा जाता है । "
प्रश्न ix (e) अनुभव केंद्रित पाठ्यक्रम |
उत्तर- अनुभव केंद्रित पाठ्यक्रम उस पाठ्यक्रम को कहते हैं जिसमें बालक के विकास हेतु अनुभवों को विशेष महत्व दिया जाता है इससे बालक का सर्वांगीण विकास संभव है। नन महोदय के अनुसार, “पाठ्यक्रम में समस्त मानव जाति के अनुभवों को शामिल करना चाहिए ।"
प्रश्न ix (f) विषय केंद्रित पाठ्यक्रम के दो गुण लिखिए।
उत्तर-
(1) इसमें पाठ्यक्रम आयोजन, शिक्षण तथा मूल्यांकन में सुविधा रहती है, जबकि विषय विहीन संरचना को समझ पाना कठिन होता है।
(2) इसमें नवीन ज्ञान की खोज करने तथा तथ्यों को उपयोगी क्रम में व्यवस्थित करने में भी सुविधा होती है।
प्रश्न ix (g) विषय केंद्रित पाठ्यक्रम की सीमाएँ बताइए ।
उत्तर- (1) यह अपेक्षित व्यवहारगत उद्देश्यों को सीमित कर देता है।
(2) इसमें अधिगम - अनुभवों का विस्तार क्षेत्र सीमित हो जाता है।
(3) इसमें किसी नवीन अंतर्वस्तु को समाविष्ट करना कठिन होता है
प्रश्न ix (h) बाल केंद्रित पाठ्यक्रम की परिभाषा दीजिए ।
उत्तर- जेम्स. ली. के अनुसार, “छात्र केंद्रित पाठ्यक्रम वह है जो पूर्णतः और समय रूप सीखने वाले में निहित है । "
प्रश्न x (a) पाठ्यक्रम निरूपण हेतु उद्देश्य की आवश्यकता बताइए ।
उत्तर-
प्रश्न x (c) कारकों (निर्धारक तत्वों) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले तत्वों को व्यक्तित्व निर्धारक तत्व कहते हैं । ये तत्व शारीरिक, बौद्धिक, रुचियों एवं अभिवृत्तियों पर आधारित होते हैं।
प्रश्न x (d) बाल केन्द्रित शिक्षा क्या हैं?
उत्तर-
बाल केन्द्रित शिक्षा का अर्थ है, बालक की रुचियों और क्षमताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रदान करना। बाल केन्द्रित शिक्षण में व्यक्तिगत शिक्षण को महत्त्व दिया जाता है। इसमें बालकों के जीवन की कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया जाता है।
प्रश्न x (f) ज्ञान के स्रोत बताइए ।
उत्तर-
ज्ञान के निम्नलिखित पाँच स्रोत हैं-
(a) इन्द्रिय अनुभव,
(b) साक्ष्य,
(c) तार्किक चिंतन,
(d) अंतःप्रज्ञावाद,
(e) सत्ता अधिकाधिक ज्ञान ।
प्रश्न x (g) ज्ञान के प्रकार बताइए ।
उत्तर-
ज्ञान के निम्नलिखित तीन प्रकार हैं-
(a) आगमनात्मक ज्ञान,
(b) प्रयोगमूलक ज्ञान,
(c) प्रागनुभव ज्ञान ।
प्रश्न x (h) ज्ञान प्राप्ति की विधियाँ बताइए ।
उत्तर-
प्रश्न x (i)
प्रश्न x (j) ज्ञान व सूचना में समानता बताइए ।
उत्तर-
(i) ज्ञान और सूचना के प्रत्यय समान हैं।
(i) ज्ञान और सूचना का निष्कर्षण मूल आँकड़ों से होता है।
(ii) ज्ञान व सूचना दोनों की पहचान अवलोकन से होती है।
प्रश्न x (k) ज्ञान एवं सूचना के बीच दो अन्तर कीजिए।
उत्तर-
ज्ञान और सूचना में अंतर -
(i) ज्ञानेन्द्रियों से जो प्रत्यक्षीकरण तथा अनुभव होता है, उसे ज्ञान कहते हैं जबकि किसी वस्तु के विषय में जानकारी है उसे सूचना कहते हैं ।
(ii) ज्ञान सूचना के प्रवाह के परिणामस्वरूप प्राप्त होता है जबकि सूचना संदेशों के प्रवाह के परिणामस्वरूप प्राप्त होती है।
प्रश्न x (L) 'ज्ञान' का अर्थ बताइए।
उत्तर-
प्रज्ञा ज्ञाता और ज्ञेय के पारस्परिक संबंध को ज्ञान माना जाता है! प्रत्येक ज्ञान में एक ज्ञाता तथा एक जेय होता है और जब ज्ञाता का ज्ञेय के साथ इंद्रियों के मध्य में संपर्क होता है तो ज्ञेय का पदार्थ के संबंध में एक चेतना होती है जिसे 'ज्ञान' कहा जाता है। इस प्रकार ज्ञानेन्द्रियों से जो प्रत्यक्षीकरण तथा अनुभव होता है उसे ही ज्ञान कहा जाता है।
प्रश्न x (m.) पाठ्यक्रम निर्धारण के तत्त्व!
उत्तर-
पाठ्यक्रम के प्रमुख रूप से चार निर्धारक तत्त्व होते हैं जो इस प्रकार हैं-विषय अनुभव, कौशल तथा अभिवृत्तियाँ । पाठ्यक्रम में विविध विषयों, अनुभवों, कौशलों का समावेश होता है। अभिवृत्तियों को भी ठ्यक्रम के प्रारूप में शामिल किया जाता है।
(क) मुख्य मापदण्ड - इसके अंतर्गत - वैधता तथा महत्त्व |
(ख) गौण मापदण्ड - शिक्षार्थी की आवश्यकताएँ एवं अभिरुचियाँ, उपयोगिता तथा अधिगम योग्यता ।
प्रश्न i (c) पाठ्यक्रम पर शिक्षक के कार्य बताइए ।
उत्तर-
पाठ्यक्रम पर शिक्षक वर्ग का प्रभाव दो प्रमुख रूपों में कार्य करता है-
(i) वैयक्तिक रूप में,
(ii) संगठित शक्ति के रूप में।
प्रश्न i (d) विशारद किसे कहते हैं?
उत्तर-
समाज में विभिन्न कार्यों के लिए, विभिन्न प्रकार की विभिन्न स्तरों की योग्यता वाले व्यक्तियों की आवश्यकता होती हैं। शिक्षण के क्षेत्र में इस प्रकार की कला में पारंगत व्यक्ति को शिक्षा/विशारद कहा जाता है।
प्रश्न i (e) कोठारी आयोग का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
कोठारी आयोग का मूल्यांकन
गुण-
1. अधिक-से-अधिक लोगों से शिक्षा ग्रहण करने के लिए आग्रह करना ।
2. नवीन प्रयोगों एवं शोध कार्यों को प्रोत्साहन देना ।
3. शिक्षा के पुनर्संगठन द्वारा उसे उपयोगी बनाये जाने के व्यावहारिक प्रतिरूप का सुझाव प्राप्त होना ।
दोष -
1. इस आयोग को पूर्णरूपेण क्रियान्वित रूप देने से गाँधी जी की बेसिक शिक्षा का दाह संस्कार हो जायगा ।
2. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की शिक्षा पर बल देने के कारण बालकों का नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास रुक जायगा ।
3. अंग्रेजी पर बल देने से भारतीय भाषाओं का विकास अवरुद्ध हो जायगा ।
प्रश्न : i (f) सूचना की विशेषताएँ ।
उत्तर-
सूचना की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) सूचनाएँ आँकड़ों का व्यवस्थित, संगठित तथा परिष्कृत रूप होती हैं।
(ii) सूचना का मूल्यांकन तथा विनिमय किया जा सकता है।
(iii) सूचनाओं का संचय किया जा सकता है।
(iv) सूचना उपयोग में नष्ट नहीं होती है।
प्रश्न i (g) उच्च शिक्षा में छात्र की अनुशासनहीनता के लिए कोठारी कमीशन ने क्या कारण बताये हैं?
उत्तर-
छात्र - अनुशासनहीनता की समस्या का समाधान करने के लिए उसके कारणों से अवगत होना जरूरी है। कोठारी कमीशन ने कुछ कारणों का उल्लेख किया है जो संक्षिप्त होते हुए भी विस्तृत हैं, यथा-
(i) छात्रों का अनिश्चित भविष्य ।
(ii) छात्रों व शिक्षकों में पारस्परिक सम्पर्क का अभाव ।
(iii) अनेक शिक्षकों में विद्वत्ता का अभाव व छात्रों की समस्याओं में उनकी अरुचि ।
(iv) अनेक पाठ्य विषयों का यान्त्रिक व असन्तोषजनक स्वरूप |
(v) क्षा संस्थाओं की विशाल संख्या ।
(vi) शिक्षा संस्थाओं में शिक्षण एवं सीखने की अपर्याप्त सुविधाएँ।
(vii) शिक्षा संस्थाओं के अध्यक्षों में दृढ़ता, कल्पना व कुशलता का अभाव ।
प्रश्न : i ( h ) भारत में विद्यालय स्तर की शिक्षा के लिए पाठ्यचर्या कौन तैयार करता है?
उत्तर--
भारत में विद्यालय स्तर की शिक्षा के लिए पाठ्यचर्या की रूपरेखा, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् नई दिल्ली द्वारा तैयार की जाती है
प्रश्न :i (i) शिक्षा के राज्यस्तरीय एजेंसियों के नाम बताइए।
उत्तर-
पाठ्यक्रम विकास हेतु विभिन्न राज्यस्तरीय एजेंसियाँ जैसे- शिक्षा निदेशालय, राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषदें, जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान है।
प्रश्न :i (j) शिक्षा आयोग ( 1954-66 ) ने स्त्रियों की उच्च शिक्षा के सम्बन्ध में क्या सिफारिशें की हैं?
उत्तर--
स्त्रियों की उच्च शिक्षा के सम्बन्ध में शिक्षा आयोग के सुझाव-आयोग में बालिकाओं एवं स्त्रियों की उच्च शिक्षा के लिए अग्रांकित सिफारिशें की हैं-
1. स्त्रियों के लिए पर्याप्त छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
2. स्त्रियों के लिए उचित प्रकार के और मितव्ययी छात्रावासों की स्थापना की जानी चाहिए।
3. शिक्षा, गृह विज्ञान एवं सामाजिक कार्य के पाठ्य विषयों का विस्तार करके उनको समुन्नत बनाया जाना चाहिए।
4 . एक या दो विश्वविद्यालयों में स्त्री शिक्षा से सम्बन्धित 'अनुसन्धान यूनिटों की सृष्टि की जानी चाहिए।
5. स्त्रियों को कला, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, मानवशास्त्र आदि विषयों में से अपने अध्ययन के विषय का चुनाव करने की आज्ञा दी जानी चाहिए ।
प्रश्न i (k) त्रिभाषा सूत्र ।
उत्तर-
त्रिभाषा सूत्र में संशोधन - त्रिभाषा सूत्र के सम्बन्ध में आयोग ने लिखा है- “यह
प्रश्न i (q) ज्ञान को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
प्रश्न ii (a) अनुक्रिया क्या है?
प्रश्न ii (d) पाठ्य निर्माण में ब्लूम के वर्गीकरण का महत्त्व बताइए ।
उत्तर-
प्रश्न ii (e) शिक्षा का शाब्दिक अर्थ बताइए ।
उत्तर-
प्रश्न iii (a ) "शिक्षा एक द्विमुखी प्रक्रिया है।" इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-
प्रश्न ili (d) शिक्षा के अभिकरणों की तालिका बनाइए ।
उत्तर-
शिक्षा के अभिकरण
| औपचारिक --- अनौपचारिक -- औपचारिकेतर
| विद्यालय -- कार्यशाला \\\\अनौपचारिक \\\\ नौपचारिक केन्द्र शिक्षा - मुक्त विश्वविद्यालय -- पत्राचार शिक्षा
| समाज -परिवार -जनसंचार माध्यम -धार्मिक संस्था -क्लब
प्रश्न iii (e) औपचारिक एवं अनौपचारिक अभिकरण में तीन अन्तर बताइए ।
अथवा
औपचारिक एवं अनौपचारिक अभिकरण ।
उत्तर-
शिक्षा के औपचारिक अभिकरण
1. शिक्षा के औपचारिक अभिकरण समाज में संगठित रूप में होते हैं तथा ये स्थापित संस्था के रूप में होते हैं, जैसे विद्यालय ।
प्रश्न iii (h) ज्ञान का अर्थ समझने के लिए कितनी परिस्थितियों का होना आवश्यक है?
ज्ञान का अर्थ समझने के लिए चार परिस्थितियों का होना आवश्यक है-
उत्तर-
(i) सत्य की वस्तुनिष्ठता, (ii) ज्ञान की सार्थकता, (iii) ज्ञान की सत्यता, (iv) तार्किक प्रतिज्ञप्ति सत्यता !
प्रश्न iv (a) ज्ञान के स्तर को बताइए।
उत्तर-
ज्ञान के निम्नलिखित तीन स्तर हैं-
(1) ज्ञानात्मक क्षेत्र, (2) भावात्मक क्षेत्र, (3) क्रियात्मक क्षेत्र !
प्रश्न iv (b) ज्ञानात्मक क्षेत्र को कितने वर्गों में विभाजित किया गया है?
उत्तर-
ज्ञानात्मक क्षेत्र को निम्न छः वर्गों में विभाजित किया गया है---
(1) ज्ञान, (2) भवबोध, (3) अनुप्रयोग, (4) विश्लेषण, (5) संश्लेषण, (6) मूल्यांकन ।
(i) वैयक्तिक रूप में,
(ii) संगठित शक्ति के रूप में।
प्रश्न i (d) विशारद किसे कहते हैं?
उत्तर-
समाज में विभिन्न कार्यों के लिए, विभिन्न प्रकार की विभिन्न स्तरों की योग्यता वाले व्यक्तियों की आवश्यकता होती हैं। शिक्षण के क्षेत्र में इस प्रकार की कला में पारंगत व्यक्ति को शिक्षा/विशारद कहा जाता है।
प्रश्न i (e) कोठारी आयोग का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
कोठारी आयोग के गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
उत्तर-
कोठारी आयोग का मूल्यांकन
गुण-
1. अधिक-से-अधिक लोगों से शिक्षा ग्रहण करने के लिए आग्रह करना ।
2. नवीन प्रयोगों एवं शोध कार्यों को प्रोत्साहन देना ।
3. शिक्षा के पुनर्संगठन द्वारा उसे उपयोगी बनाये जाने के व्यावहारिक प्रतिरूप का सुझाव प्राप्त होना ।
दोष -
1. इस आयोग को पूर्णरूपेण क्रियान्वित रूप देने से गाँधी जी की बेसिक शिक्षा का दाह संस्कार हो जायगा ।
2. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की शिक्षा पर बल देने के कारण बालकों का नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास रुक जायगा ।
3. अंग्रेजी पर बल देने से भारतीय भाषाओं का विकास अवरुद्ध हो जायगा ।
प्रश्न : i (f) सूचना की विशेषताएँ ।
उत्तर-
सूचना की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) सूचनाएँ आँकड़ों का व्यवस्थित, संगठित तथा परिष्कृत रूप होती हैं।
(ii) सूचना का मूल्यांकन तथा विनिमय किया जा सकता है।
(iii) सूचनाओं का संचय किया जा सकता है।
(iv) सूचना उपयोग में नष्ट नहीं होती है।
प्रश्न i (g) उच्च शिक्षा में छात्र की अनुशासनहीनता के लिए कोठारी कमीशन ने क्या कारण बताये हैं?
उत्तर-
छात्र - अनुशासनहीनता की समस्या का समाधान करने के लिए उसके कारणों से अवगत होना जरूरी है। कोठारी कमीशन ने कुछ कारणों का उल्लेख किया है जो संक्षिप्त होते हुए भी विस्तृत हैं, यथा-
(i) छात्रों का अनिश्चित भविष्य ।
(ii) छात्रों व शिक्षकों में पारस्परिक सम्पर्क का अभाव ।
(iii) अनेक शिक्षकों में विद्वत्ता का अभाव व छात्रों की समस्याओं में उनकी अरुचि ।
(iv) अनेक पाठ्य विषयों का यान्त्रिक व असन्तोषजनक स्वरूप |
(v) क्षा संस्थाओं की विशाल संख्या ।
(vi) शिक्षा संस्थाओं में शिक्षण एवं सीखने की अपर्याप्त सुविधाएँ।
(vii) शिक्षा संस्थाओं के अध्यक्षों में दृढ़ता, कल्पना व कुशलता का अभाव ।
प्रश्न : i ( h ) भारत में विद्यालय स्तर की शिक्षा के लिए पाठ्यचर्या कौन तैयार करता है?
उत्तर--
भारत में विद्यालय स्तर की शिक्षा के लिए पाठ्यचर्या की रूपरेखा, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् नई दिल्ली द्वारा तैयार की जाती है
प्रश्न :i (i) शिक्षा के राज्यस्तरीय एजेंसियों के नाम बताइए।
उत्तर-
पाठ्यक्रम विकास हेतु विभिन्न राज्यस्तरीय एजेंसियाँ जैसे- शिक्षा निदेशालय, राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषदें, जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान है।
प्रश्न :i (j) शिक्षा आयोग ( 1954-66 ) ने स्त्रियों की उच्च शिक्षा के सम्बन्ध में क्या सिफारिशें की हैं?
उत्तर--
स्त्रियों की उच्च शिक्षा के सम्बन्ध में शिक्षा आयोग के सुझाव-आयोग में बालिकाओं एवं स्त्रियों की उच्च शिक्षा के लिए अग्रांकित सिफारिशें की हैं-
1. स्त्रियों के लिए पर्याप्त छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
2. स्त्रियों के लिए उचित प्रकार के और मितव्ययी छात्रावासों की स्थापना की जानी चाहिए।
3. शिक्षा, गृह विज्ञान एवं सामाजिक कार्य के पाठ्य विषयों का विस्तार करके उनको समुन्नत बनाया जाना चाहिए।
4 . एक या दो विश्वविद्यालयों में स्त्री शिक्षा से सम्बन्धित 'अनुसन्धान यूनिटों की सृष्टि की जानी चाहिए।
5. स्त्रियों को कला, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, मानवशास्त्र आदि विषयों में से अपने अध्ययन के विषय का चुनाव करने की आज्ञा दी जानी चाहिए ।
उत्तर-
त्रिभाषा सूत्र में संशोधन - त्रिभाषा सूत्र के सम्बन्ध में आयोग ने लिखा है- “यह
प्रश्न i (p) पाठ्यक्रम निर्माण में शिक्षक की भूमिका ।
उत्तर-
पाठ्यक्रम निर्माण के लिए भिन्न-भिन्न विषयों तथा क्रियाओं के लिए समितियों का गठन किया जाता है। इन समितियों में शिक्षाविदों के साथ-साथ अध्यापक भी होते हैं। प्रत्येक वर्ग के कुछ प्रतिनिधि ही लिए जा सकते हैं। इस प्रक्रिया का दूसरा चरण होता है अध्यापकों के लिए गोष्ठियाँ, कर्मशाला आदि का आयोजन करना । विषय समितियों द्वारा प्रस्तावित पाठ्यक्रम में इस प्रकार अध्यापकों की राय भी ली जाती है। स्पष्ट है कि पाठ्यक्रम निर्माण में अध्यापकों का भी हाथ होता है।
उत्तर-
पाठ्यक्रम निर्माण के लिए भिन्न-भिन्न विषयों तथा क्रियाओं के लिए समितियों का गठन किया जाता है। इन समितियों में शिक्षाविदों के साथ-साथ अध्यापक भी होते हैं। प्रत्येक वर्ग के कुछ प्रतिनिधि ही लिए जा सकते हैं। इस प्रक्रिया का दूसरा चरण होता है अध्यापकों के लिए गोष्ठियाँ, कर्मशाला आदि का आयोजन करना । विषय समितियों द्वारा प्रस्तावित पाठ्यक्रम में इस प्रकार अध्यापकों की राय भी ली जाती है। स्पष्ट है कि पाठ्यक्रम निर्माण में अध्यापकों का भी हाथ होता है।
प्रश्न i (q) ज्ञान को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
(1) एस. आर. रंगनाथन के अनुसार, “ज्ञान सभ्यता संरक्षित सूचना का समग्र योग होता है ।
(2) जे. एच. शेरा के अनुसार, “ज्ञान बौद्धिक पद्धति द्वारा निष्पादित प्रक्रिया का परिणाम है । "
(3) वेबस्टर्स न्यू इंटरनेशनल डिक्शनरी ऑफ इंग्लिश लैंग्वेज के अनुसार, -“ज्ञान वास्तविक अनुभव, व्यावहारिक अनुभव, कार्यकुशलता आदि के द्वारा प्राप्त जानकारी है।
(2) जे. एच. शेरा के अनुसार, “ज्ञान बौद्धिक पद्धति द्वारा निष्पादित प्रक्रिया का परिणाम है । "
(3) वेबस्टर्स न्यू इंटरनेशनल डिक्शनरी ऑफ इंग्लिश लैंग्वेज के अनुसार, -“ज्ञान वास्तविक अनुभव, व्यावहारिक अनुभव, कार्यकुशलता आदि के द्वारा प्राप्त जानकारी है।
प्रश्न ii (a) अनुक्रिया क्या है?
उत्तर-
अनुक्रिया के अंतर्गत अभिप्रेरणा तथा अवधान में अधिक सक्रियता एवं नियमितता की अपेक्षा की जाती है। व्यावहारिक दृष्टि से इसे अभिरुचि भी कहा जाता है।
प्रश्न ii (b) अनुमूल्यन के स्तर बताइए ।
उत्तर- अनुमूल्यन के तीन स्तर हैं-
(1) मूल्य की स्वीकृति,
(2) मूल्यों को वरीयता क्रम होना,
(3) प्रतिबद्धता ।
प्रश्न ii (c) क्रियात्मक अथवा मनःचालित क्षेत्र के प्रकार बताइए ।
उत्तर-
(1) अनुकरण,
(2) कार्य करना,
(3) नियंत्रण,
(4) संधि योग,
(5) नैसर्गीकरण,
(6) आदत निर्माण या कौशल ।
उत्तर- अनुमूल्यन के तीन स्तर हैं-
(1) मूल्य की स्वीकृति,
(2) मूल्यों को वरीयता क्रम होना,
(3) प्रतिबद्धता ।
प्रश्न ii (c) क्रियात्मक अथवा मनःचालित क्षेत्र के प्रकार बताइए ।
उत्तर-
(1) अनुकरण,
(2) कार्य करना,
(3) नियंत्रण,
(4) संधि योग,
(5) नैसर्गीकरण,
(6) आदत निर्माण या कौशल ।
प्रश्न ii (d) पाठ्य निर्माण में ब्लूम के वर्गीकरण का महत्त्व बताइए ।
उत्तर-
(1) इस वर्गीकरण की सहायता से मूल्यांकन विधियों की वैधता की जाँच भी सरलता से की जा सकती है।
(2) इस वर्गीकरण से पाठ्यपुस्तकों तथा अन्य पाठ्य सामग्री के निर्माण, विश्लेषण, मूल्यांकन, संशोधन आदि की अधिक सुविधा रहती है।
(2) इस वर्गीकरण से पाठ्यपुस्तकों तथा अन्य पाठ्य सामग्री के निर्माण, विश्लेषण, मूल्यांकन, संशोधन आदि की अधिक सुविधा रहती है।
प्रश्न ii (e) शिक्षा का शाब्दिक अर्थ बताइए ।
उत्तर-
शिक्षा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों से मानी जाती है - एक है - 'शिक्ष' धातु जिसका अर्थ है सीखना और दूसरा 'शाक्ष' धातु जिसका अर्थ है - अनुशासन में रहना, नियंत्रण में रखना ।
प्रश्न ii (f) किन्हीं दो भारतीय विद्वान के अनुसार शिक्षा की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
उत्तर-
(1) महात्मा गांधी के अनुसार -
"शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक और मनुष्य शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है ।
(2) रवीन्द्र नाथ टैगोर के अनुसार -
"सर्वोच्च शिक्षा वह है जो हमें केवल सूचनाएँ नहीं देती वरन् हमारे जीवन को सम्पूर्ण सृष्टि से तादात्म्य स्थापित करती है। "
प्रश्न ii (g) शिक्षा का संकुचित अर्थ बताइए।
उत्तर-
"शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक और मनुष्य शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है ।
(2) रवीन्द्र नाथ टैगोर के अनुसार -
"सर्वोच्च शिक्षा वह है जो हमें केवल सूचनाएँ नहीं देती वरन् हमारे जीवन को सम्पूर्ण सृष्टि से तादात्म्य स्थापित करती है। "
उत्तर-
जे. एस. मैकेंजी के अनुसार - "संकुचित अर्थ में शिक्षा का अभिप्राय हमारी शक्तियों का विकास और उन्नति के लिए चेतनापूर्वक किये गये प्रयासों से लिया जाता है।”
प्रश्न iii (a ) "शिक्षा एक द्विमुखी प्रक्रिया है।" इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-
जान एडम्स के अनुसार - "शिक्षा एक द्विमुखी प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्तित्व दूसरे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है, जिससे उसके व्यवहार में परिवर्तन हो सके।"
शैक्षिक प्रक्रिया = शिक्षार्थी -- शिक्षक
प्रश्न iii (b) "शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है । "
उत्तर-
शैक्षिक प्रक्रिया = शिक्षार्थी -- शिक्षक
प्रश्न iii (b) "शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है । "
उत्तर-
जॉन डी. वी. के अनुसार शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है, जिसमें शिक्षक एवं बालक और पाठ्यक्रम महत्त्वपूर्ण है। अतः उन्होंने शिक्षा प्रक्रिया के तीन आधारभूत स्तम्भ बताये हैं-
(1) बालक, (2) शिक्षक, (3) पाठ्यक्रम ।
प्रश्न iii (c) निरौपचारिक शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
(1) बालक, (2) शिक्षक, (3) पाठ्यक्रम ।
प्रश्न iii (c) निरौपचारिक शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
इसमें पाठ्यक्रम तो होता है परन्तु इसे पूरा करने की अवधि छात्र की गति पर निर्भर करती है। ऐसी शिक्षा में डिग्री प्राप्त करने का कोई बन्धन नहीं होता। इसके साथ- साथ स्थान एवं समय का भी बन्धन नहीं होता। ऐसी शिक्षा पर व्यय भी कम होता है। सेवारत कर्मचारी ऐसी शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। इसके अन्तर्गत खुले विद्यालय, पत्राचार शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र आदि हैं।
प्रश्न ili (d) शिक्षा के अभिकरणों की तालिका बनाइए ।
उत्तर-
शिक्षा के अभिकरण को निम्न तालिका द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है--
शिक्षा के अभिकरण
| औपचारिक --- अनौपचारिक -- औपचारिकेतर
| विद्यालय -- कार्यशाला \\\\अनौपचारिक \\\\ नौपचारिक केन्द्र शिक्षा - मुक्त विश्वविद्यालय -- पत्राचार शिक्षा
| समाज -परिवार -जनसंचार माध्यम -धार्मिक संस्था -क्लब
प्रश्न iii (e) औपचारिक एवं अनौपचारिक अभिकरण में तीन अन्तर बताइए ।
अथवा
औपचारिक एवं अनौपचारिक अभिकरण ।
उत्तर-
औपचारिक एवं अनौपचारिक अभिकरण के तीन अन्तर
शिक्षा के औपचारिक अभिकरण
1. शिक्षा के औपचारिक अभिकरण समाज में संगठित रूप में होते हैं तथा ये स्थापित संस्था के रूप में होते हैं, जैसे विद्यालय ।
2. शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरणों का स्थान सदैव किसी-न-किसी निश्चित स्थान पर होते हैं।
3. शिक्षा के औपचारिक अभिकरण केवल शिक्षा प्रदान करने का ही कार्य करते हैं। ये प्रत्यक्ष रूप से शिक्षा प्रदान करते हैं।
शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरण
1.
शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरण
शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरण न तो
सुसंगठित होते हैं और न ही ये संस्थागत रूप से स्थापित होते हैं जैसे कि मित्र -.
मण्डली ।
2. शिक्षा के औपचारिक अभिकरण कोई निश्चित नहीं होता, ये कहीं भी हो सकते हैं।
3. शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरण प्रत्यक्ष
रूप से शिक्षा प्रदान करने का कार्य नहीं करतें, ये जीवन से सम्बन्धित विभिन्न अनुभव प्रदान करते हैं।
प्रश्न iii (f) शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरणों से आप क्या समझते हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर--
औपचारिक शिक्षा की जटिलता एवं साधनों और औपचारिक शिक्षा के अव्यवस्थित होने के कारण शिक्षा के इस तीसरे प्रकार के अभिकरण का विकास किया गया। इस अभिकरण में औपचारिक शिक्षा की भाँति स्थान एवं समय का बन्धन नहीं होता। इस अभिकरण में पाठ्यक्रम तो होता है पर उसे पूरा करने की अवधि छात्र की अपनी गति पर निर्भर करता है । इस अभिकरण द्वारा दी जाने वाली शिक्षा के उद्देश्य निश्चित होते हैं तथा कभी-कभी कई वर्षों में पूरे होनेवाले औपचारिक पाठ्यक्रमों को संघानित करके कम समय में ही पूरा किया जा सकता है। इस प्रकार की व्यवस्था प्राइमरी तक के अनौपचारिक शिक्षा के केन्द्रों पर होती है जहाँ ऐसे बालकों को शिक्षा दी जाती हैं जो औपचारिक शिक्षा के कार्यों में व्यस्त होते हैं। इस अभिकरण के अन्तर्गत खुले विश्वविद्यालय एवं पत्राचार शिक्षा आदि प्रमुख हैं।
प्रश्न iii (g) औपचारिक शिक्षा और औपचारिकेतर शिक्षा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर--
अनौपचारिक शिक्षा में निश्चित एवं व्यवस्थित ढंग से शिक्षा दी जाती है। इसमें शिक्षक होते हैं तथा विशिष्ट विषयों का अध्ययन कराया जाता है। प्रत्येक विषय के लिए निश्चित समय-सारिणी होती है। अनुशासित ढंग से रहना पड़ता है। इसमें उद्देश्य पहले से निश्चित होता है। लक्ष्य के अनुसार विशेष व्यवसाय की तैयारी करायी जाती है।
जबकि औपचारिकेतर शिक्षा औपचारिकता के बन्धन से अंशतः मुक्त होती है। वह लचीली होती है। इसमें व्यय भी कम होता है। यह अभिकरण समय की सुरक्षा करता है। इन अभिकरणों से शिक्षा ग्रहण करने के लिए डिग्री आदि की आवश्यकता प्रमुख नहीं होती है।
ज्ञान का अर्थ समझने के लिए चार परिस्थितियों का होना आवश्यक है-
उत्तर-
(i) सत्य की वस्तुनिष्ठता, (ii) ज्ञान की सार्थकता, (iii) ज्ञान की सत्यता, (iv) तार्किक प्रतिज्ञप्ति सत्यता !
प्रश्न iv (a) ज्ञान के स्तर को बताइए।
उत्तर-
ज्ञान के निम्नलिखित तीन स्तर हैं-
(1) ज्ञानात्मक क्षेत्र, (2) भावात्मक क्षेत्र, (3) क्रियात्मक क्षेत्र !
प्रश्न iv (b) ज्ञानात्मक क्षेत्र को कितने वर्गों में विभाजित किया गया है?
उत्तर-
ज्ञानात्मक क्षेत्र को निम्न छः वर्गों में विभाजित किया गया है---
(1) ज्ञान, (2) भवबोध, (3) अनुप्रयोग, (4) विश्लेषण, (5) संश्लेषण, (6) मूल्यांकन ।
प्रश्न iv (c) 'ज्ञान'।
उत्तर-
ज्ञान स्मरण नामक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया पर आधारित है। इसके अंतर्गत छात्रों के प्रत्यास्मरण तथा अभिज्ञान की क्रियाओं को तथ्यों, शब्दों, नियमों, सिद्धांतों, सूचनाओं, नमूनों आदि की सहायता से विकसित किया जाता है।
प्रश्न iv (d) अवबोध का वर्गीकरण बताइए।
उत्तर-
(1) अनुवाद, ( 2 ) भावार्थ या अर्थापन (3) बहिर्वेशन ।
प्रश्न iv (e) अनुप्रयोग के प्रकार बताइए।
उत्तर-
अनुप्रयोग के तीन प्रकार हैं-
(1) सामान्यीकरण,
उत्तर-
ज्ञान स्मरण नामक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया पर आधारित है। इसके अंतर्गत छात्रों के प्रत्यास्मरण तथा अभिज्ञान की क्रियाओं को तथ्यों, शब्दों, नियमों, सिद्धांतों, सूचनाओं, नमूनों आदि की सहायता से विकसित किया जाता है।
प्रश्न iv (d) अवबोध का वर्गीकरण बताइए।
उत्तर-
(1) अनुवाद, ( 2 ) भावार्थ या अर्थापन (3) बहिर्वेशन ।
प्रश्न iv (e) अनुप्रयोग के प्रकार बताइए।
उत्तर-
अनुप्रयोग के तीन प्रकार हैं-
(1) सामान्यीकरण,
(2) निदान,
(3) प्रयोग ।
प्रश्न iv (f) संश्लेषण के प्रकार बताइए।
उत्तर-
(1) विशिष्ट संज्ञापन
(2) योजना की उत्पत्ति,
(3) अमूर्त संबंधों के समुच्चय का निर्माण ।
प्रश्न iv (g) भावात्मक पक्ष के उद्देश्य को कितने वर्गों में विभाजित किया है?
उत्तर-
भावात्मक पक्ष के उद्देश्य को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है-
(1) आग्रहण या प्राप्ति,
(2) अनुक्रिया,
(3) अनुमूल्यन,
(4) व्यवस्थापन,
(5) मूल्य का लक्षण ।
प्रश्न iv (h) वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को रेखांकित कीजिए ।
उत्तर-
शिक्षा व्यवस्था = शिक्षक + शिक्षार्थी + पाठ्यक्रम
प्रश्न iv (i) पाठ्यक्रम की अवधारणा बताइए ।
उत्तर-
पाठ्यक्रम को अंग्रेजी भाषा में 'Curriculum' कहते हैं, जिसकी उत्पत्ति लेटिन भाषा के 'Curricere/Currere' अथवा 'कुर्रेर' से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है 'दौड़ का मैदान' (A Race Cource)। सीधे शब्दों में कहा जाये तो पाठ्यक्रम वह क्रम है जिसे व्यक्ति को अपने गन्तव्य स्थान पर पहुँचने के लिए पार करना होता है।
शिक्षा के अर्थ के बारे में दो धारणाएँ हैं-
पहला प्रचलित अर्थ या संकुचित अर्थ व दूसरा वास्तविक या व्यापक अर्थ।
संकुचित अर्थ में शिक्षा केवल स्कूली शिक्षा या पुस्तकीय ज्ञान तक ही सीमित होती है तथा इस दृष्टि से पाठ्यक्रम को केवल विभिन्न विषयों के पुस्तकीय ज्ञान तक ही सीमित माना जाता है परन्तु विस्तृत अर्थ में पाठ्यक्रम के अन्तर्गत वे सभी अनुभव आ जाते हैं जिसे एक नई पीढ़ी अपनी पुरानी पीढ़ियों से प्राप्त करती है। साथ ही विद्यालय में रहते हुए शिक्षक के संरक्षण में विद्यार्थी जो भी संक्रियाएँ करता है वह सभी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत आती हैं तथा इसके अतिरिक्त विभिन्न पाठयक्रम सहभागी क्रियाएँ भी पाठ्यक्रम का अंग होती हैं। अतः वर्तमान समय में ‘पाठ्यक्रम' से तात्पर्य उसके विस्तृत रूप से है ।
प्रश्न v(a) पाठ्यक्रम की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
पाठ्यक्रम को विभिन्न विद्वानों द्वारा निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है-
पॉल हिरस्ट के अनुसार,--
“पाठ्यक्रम ऐसी गतिविधियों का समायोजन है जिनके द्वारा छात्र जहाँ तक सम्भव हो, निश्चित परिणामों व उद्देश्यों को प्राप्त करते हैं।
" कनिंघम के अनुसार,--
“पाठ्यक्रम कलाकार (शिक्षक) के हाथ में एक साधन है जिससे वह अपनी सामग्री (शिक्षार्थी) को अपने आदर्श, उद्देश्य के अनुसार अपनी चित्रशाला (विद्यालय) में ढाल सकता है।'
फ्रॉबेल के अनुसार, --
“पाठ्यक्रम सम्पूर्ण मानव जाति के ज्ञान एवं अनुभव का प्रतिरूप होना चाहिए।"
मुनरो के अनुसार, “पाठ्यक्रम सारे अनुभवों को अपने में सम्मिलित करता है जिसका प्रयोग विद्यालय द्वारा बालक को शिक्षित करने के उद्देश्य से होता है । "
प्रश्न iv (f) संश्लेषण के प्रकार बताइए।
उत्तर-
(1) विशिष्ट संज्ञापन
(2) योजना की उत्पत्ति,
(3) अमूर्त संबंधों के समुच्चय का निर्माण ।
प्रश्न iv (g) भावात्मक पक्ष के उद्देश्य को कितने वर्गों में विभाजित किया है?
उत्तर-
भावात्मक पक्ष के उद्देश्य को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है-
(1) आग्रहण या प्राप्ति,
(2) अनुक्रिया,
(3) अनुमूल्यन,
(4) व्यवस्थापन,
(5) मूल्य का लक्षण ।
प्रश्न iv (h) वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को रेखांकित कीजिए ।
उत्तर-
शिक्षा व्यवस्था = शिक्षक + शिक्षार्थी + पाठ्यक्रम
प्रश्न iv (i) पाठ्यक्रम की अवधारणा बताइए ।
उत्तर-
पाठ्यक्रम को अंग्रेजी भाषा में 'Curriculum' कहते हैं, जिसकी उत्पत्ति लेटिन भाषा के 'Curricere/Currere' अथवा 'कुर्रेर' से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है 'दौड़ का मैदान' (A Race Cource)। सीधे शब्दों में कहा जाये तो पाठ्यक्रम वह क्रम है जिसे व्यक्ति को अपने गन्तव्य स्थान पर पहुँचने के लिए पार करना होता है।
शिक्षा के अर्थ के बारे में दो धारणाएँ हैं-
पहला प्रचलित अर्थ या संकुचित अर्थ व दूसरा वास्तविक या व्यापक अर्थ।
संकुचित अर्थ में शिक्षा केवल स्कूली शिक्षा या पुस्तकीय ज्ञान तक ही सीमित होती है तथा इस दृष्टि से पाठ्यक्रम को केवल विभिन्न विषयों के पुस्तकीय ज्ञान तक ही सीमित माना जाता है परन्तु विस्तृत अर्थ में पाठ्यक्रम के अन्तर्गत वे सभी अनुभव आ जाते हैं जिसे एक नई पीढ़ी अपनी पुरानी पीढ़ियों से प्राप्त करती है। साथ ही विद्यालय में रहते हुए शिक्षक के संरक्षण में विद्यार्थी जो भी संक्रियाएँ करता है वह सभी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत आती हैं तथा इसके अतिरिक्त विभिन्न पाठयक्रम सहभागी क्रियाएँ भी पाठ्यक्रम का अंग होती हैं। अतः वर्तमान समय में ‘पाठ्यक्रम' से तात्पर्य उसके विस्तृत रूप से है ।
उत्तर-
पाठ्यक्रम को विभिन्न विद्वानों द्वारा निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है-
पॉल हिरस्ट के अनुसार,--
“पाठ्यक्रम ऐसी गतिविधियों का समायोजन है जिनके द्वारा छात्र जहाँ तक सम्भव हो, निश्चित परिणामों व उद्देश्यों को प्राप्त करते हैं।
" कनिंघम के अनुसार,--
“पाठ्यक्रम कलाकार (शिक्षक) के हाथ में एक साधन है जिससे वह अपनी सामग्री (शिक्षार्थी) को अपने आदर्श, उद्देश्य के अनुसार अपनी चित्रशाला (विद्यालय) में ढाल सकता है।'
फ्रॉबेल के अनुसार, --
“पाठ्यक्रम सम्पूर्ण मानव जाति के ज्ञान एवं अनुभव का प्रतिरूप होना चाहिए।"
मुनरो के अनुसार, “पाठ्यक्रम सारे अनुभवों को अपने में सम्मिलित करता है जिसका प्रयोग विद्यालय द्वारा बालक को शिक्षित करने के उद्देश्य से होता है । "
प्रश्न v (b) पाठ्यक्रम व पाठ्यवस्तु में अंतर बताइए ।
अथवा
पाठ्यक्रम एवं पाठ्यचर्या में अन्तर ।
उत्तर-
पाठ्यक्रम व पाठ्यवस्तु के इसी अन्तर को एक विद्वान ने भिन्न दृष्टि से प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार, “पाठ्यवस्तु पूरे शैक्षिक सत्र में विभिन्न विषयों में शिक्षक द्वारा छात्रों को दिये जाने वाले ज्ञान की मात्रा के विषय में निश्चित जानकारी प्रस्तुत करता है जबकि पाठ्यक्रम यह प्रदर्शित करता है कि शिक्षक किस प्रकार की शैक्षिक क्रियाओं के द्वारा पाठ्य-वस्तु की आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा। दूसरे शब्दों में पाठ्यवस्तु शिक्षण की विषय-वस्तु का निर्धारण करता है तथा पाठ्यक्रम उसे देने के लिए प्रयुक्त विधि ।”
प्रश्न v (c) पाठ्यक्रम के प्रकार बताइए ।
उत्तर-
पाठ्यक्रम के निम्न प्रकार हैं-
(1) बाल केंद्रित पाठ्यक्रम,
(2) क्रियाकेंद्रित पाठ्यक्रम,
(3) कोर पाठ्यक्रम ।
प्रश्न v (d) पाठ्यक्रम के आधार बताइए ।
उत्तर-
(1) पाठ्यक्रम के दार्शनिक आधार,
(2) सामाजिक आधार,
(3) मनोवैज्ञानिक आधार,
(4) वैज्ञानिक आधार ।
प्रश्न v (e) पाठ्यक्रम के सामाजिक आधार बताइए ।
उत्तर-
वर्तमान समय में जनतन्त्रीय प्रणाली का प्रचलन होने से पाठ्यक्रम पर भी सामाजिक आधार पर बहुत बल दिया जाता है तथा पाठ्यक्रम में उन विषयों एवं क्रियाओं को स्थान देने की बात कही जाती है जो छात्र में सामाजिकता की भावना का विकास करें। इस दृष्टि से पाठ्यक्रम में भाषा, इतिहास, साहित्य, समाजशास्त्र, भूगोल व नीतिशास्त्र को स्थान दिया जाता है। सामाजिक आधार पर संगठित पाठ्यक्रम मुख्य रूप से सामाजिकता की भावना पर आधारित होता है
प्रश्न v (f) पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत लिखिए।
उत्तर-
(1) जीवन से संबंधित होने का सिद्धांत ।
(2) शैक्षिक उद्देश्यों से अनुरूपता का सिद्धांत ।
(3) बाल केन्द्रित शिक्षा का सिद्धांत ।
प्रश्न v (g) मूल्य क्या है? इसके प्रकार लिखिए।
उत्तर-
अर्बन के अनुसार, “मूल्य वह है जो मानव इच्छाओं की पुष्टि करे । '
उत्तर-
अर्बन के अनुसार, “मूल्य वह है जो मानव इच्छाओं की पुष्टि करे । '
मूल्य का वर्गीकरण निम्नलिखित हैं-
(1) शारीरिक,
(2) आर्थिक,
(3) मनोरंजन साहचर्य,
(4) चरित्र,
(5) सौंदर्य,
(6) बौद्धिक,
(7) धार्मिक ।
प्रश्न v (h) विश्वास एवं मूल्य में अंतर बताइए ।
उत्तर-
(1) शारीरिक,
(2) आर्थिक,
(3) मनोरंजन साहचर्य,
(4) चरित्र,
(5) सौंदर्य,
(6) बौद्धिक,
(7) धार्मिक ।
उत्तर-
विश्वास एक दृढ़ धारणा है जो वास्तविक होती है जबकि मूल्य पसंदगी अथवा नापसंदगी की प्राथमिकताएँ होती हैं।
प्रश्न vi (a) अधिगमकर्ता की विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर-
प्रश्न vi (a) अधिगमकर्ता की विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर-
(1) प्रत्येक विद्यार्थी अधिगम एवं रुचियों, आवश्यकताओं क्षमताओं व योग्यताओं के आधार पर भिन्न होता है।
(2) अधिगमकर्ता को वैज्ञानिक, सामाजिक व शारीरिक शिक्षा की जानकारी होती है।
प्रश्न vi.(b) उदीयमान समाज में परिवर्तन के क्षेत्र बताइए ।
उत्तर-
उदीयमान समाज में परिवर्तन के निम्नलिखित क्षेत्र हैं-
(1) राजनैतिक क्षेत्र,
(2) शैक्षिक क्षेत्र,
(3) आर्थिक क्षेत्र,
(4) धार्मिक क्षेत्र,
(5) पारिवारिक क्षेत्र ।
प्रश्न vi (c) शिक्षकों के अनुभव व चिन्त्य विषय!
उत्तर-
देते हैं। यद्यपि पाठ्यचर्या रचना में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले शिक्षकों की संख्या पाठ्यचर्या के विकास हेतु शिक्षकों के अनुभव व चिन्त्य विषय भी सकारात्मक योगदान बहुत थोड़ी है, जबकि पाठ्यचर्या को लागू करने वालों में शिक्षकों का योगदान शिक्षा पक्रिया में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न vi (d) सामाजिक स्थिति एवं पाठ्यक्रम।
उत्तर--
समाज की सामाजिक स्थिति का सबसे अधिक प्रभाव उसके शैक्षिक उद्देश्यों पर पड़ता है। पाठ्यक्रम का उद्देश्य एक तरह से व्यक्ति को समुचित समायोजन में सहायता प्रदान करना ही होता है।
प्रश्न vi(e) बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम।
उत्तर-
बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम का अभिप्राय उस पाठ्यक्रम से है, जिसका संगठन बालक की प्रवृत्ति, रुचि, रुझान, आवश्यकता आदि को ध्यान में रखकर किया जाता है अर्थात इस पाठ्यक्रम में विषयों की अपेक्षा बालकों को मुख्य स्थान दिया जाता है। इस पाठ्यक्रम को हम मनोवैज्ञानिक पाठ्यक्रम भी कह सकते हैं, क्योंकि यह बालक की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं पर आधारित होता है |
प्रश्न vi (f) पाठ्यक्रम में लैंगिक भेद-भाव ।
अथवा
लिंग-भेद ।
अथवा
पाठ्यक्रम निर्धारक तत्व के रूप में लिंग का प्रभाव ।
उत्तर-
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में अधिकांश पाठ्य पुस्तकों में लिंग आधारित भेद-भाव दिखाई देता है। विद्यालय जिसमें कई संस्कृति के विद्यार्थी होते हैं ये भी लिंग आधारित भेदभाव संस्थान की पाठ्य-पुस्तकों द्वारा निष्पत्ति परीक्षणों द्वारा कार्यक्रम में लैंगिक विभेदीकृत पाठ्यक्रम द्वारा दिखाई देता है।
प्रश्न vi (g) पाठ्यक्रम आधारित लिंग असमानता का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
"कुछ सांस्कृतिक विचारधाराएँ जैसे स्त्रियों को माँ की भूमिका अदा करनी है और पारिवारिक जिम्मेदारी जैसे घर, परिवार व बच्चों की देखभाल आदि। इसलिए बालिका वर्ग को पाठ्यक्रम के अंतर्गत उन शैक्षिक स्तरों का चुनाव करना चाहिए। जो आगे चलकर उनके व्यवसाय में गृह कार्यों की सुविधा हेतु अधिकाधिक छुट्टी का प्रावधान शामिल करता है।
प्रश्न vi (h) पाठ्यक्रम आधारित लिंग असमानता को दूर करने के सुझाव बताइए ।
उत्तर-
(i) गणितीय, वैज्ञानिक तथा टेक्नोलॉजी जैसे विषयों पर बालक समूह का आधिपत्य है, बालिकाओं को पाठ्यक्रम के इन विषयों को अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
(ii) सभी प्रशिक्षण एवं व्यावसायिक कोर्सों को अनिवार्य स्तर पर लागू किया जाना चाहिए।
प्रश्न vii (a) सम्पूर्ण समायोजन।
उत्तर-
विद्यालय में सभी प्रकार के बच्चों का प्रवेश, सभी के लिए समान पाठ्यक्रम, सभी को एक ही विधि से एक साथ पढ़ना लिखना, सभी की एक समान रूप से परीक्षा लेना और सभी का एक ही पैमाने पर मूल्यांकन करना और सभी को प्रमाण पत्र देना आदि ।
प्रश्न vii (b) पाठ्यचर्या विकास की प्रक्रिया के तत्त्व बताइए ।
उत्तर-
इसके चार प्रमुख तत्त्व हैं-
(1) शिक्षण उद्देश्य, (2) शिक्षण विधि, (3) परीक्षण, (4) पृष्ठ पोषण ।
प्रश्न vii (c) शिक्षण अधिगम प्रदान करने की विधि बताइए।
उत्तर-
शिक्षण अधिगम प्रदान करने की निम्नलिखित विधियाँ हैं
(1) व्याख्यान विधि, (2) परिचर्या विधि, (3) परियोजना विधि, (4) निर्देशन विधि |
प्रश्न vii (d) पाठ्यचर्या के मूल्यांकन के स्तर बताइए।
उत्तर-
पाठ्यचर्या के मूल्यांकन के तीन स्तर हैं-
(1) उद्देश्य, (2) गतिविधियाँ, (3) मूल्यांकन |
प्रश्न vii (e) पाठ्यचर्या विकास के तत्त्व बताइए ।
उत्तर-
पाठ्यचर्या विकास के निम्नलिखित तत्त्व हैं-
(1) आवश्यकताओं का विश्लेषण,
(2) उद्देश्यों का स्पष्टीकरण,
(3) आगत तत्वों का विश्लेषण,
(4) प्रक्रिया अभिकल्प तैयार करना,
(5) प्रारम्भिक जाँच।
(2) अधिगमकर्ता को वैज्ञानिक, सामाजिक व शारीरिक शिक्षा की जानकारी होती है।
प्रश्न vi.(b) उदीयमान समाज में परिवर्तन के क्षेत्र बताइए ।
उत्तर-
उदीयमान समाज में परिवर्तन के निम्नलिखित क्षेत्र हैं-
(1) राजनैतिक क्षेत्र,
(2) शैक्षिक क्षेत्र,
(3) आर्थिक क्षेत्र,
(4) धार्मिक क्षेत्र,
(5) पारिवारिक क्षेत्र ।
प्रश्न vi (c) शिक्षकों के अनुभव व चिन्त्य विषय!
उत्तर-
देते हैं। यद्यपि पाठ्यचर्या रचना में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले शिक्षकों की संख्या पाठ्यचर्या के विकास हेतु शिक्षकों के अनुभव व चिन्त्य विषय भी सकारात्मक योगदान बहुत थोड़ी है, जबकि पाठ्यचर्या को लागू करने वालों में शिक्षकों का योगदान शिक्षा पक्रिया में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न vi (d) सामाजिक स्थिति एवं पाठ्यक्रम।
उत्तर--
समाज की सामाजिक स्थिति का सबसे अधिक प्रभाव उसके शैक्षिक उद्देश्यों पर पड़ता है। पाठ्यक्रम का उद्देश्य एक तरह से व्यक्ति को समुचित समायोजन में सहायता प्रदान करना ही होता है।
प्रश्न vi(e) बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम।
उत्तर-
बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम का अभिप्राय उस पाठ्यक्रम से है, जिसका संगठन बालक की प्रवृत्ति, रुचि, रुझान, आवश्यकता आदि को ध्यान में रखकर किया जाता है अर्थात इस पाठ्यक्रम में विषयों की अपेक्षा बालकों को मुख्य स्थान दिया जाता है। इस पाठ्यक्रम को हम मनोवैज्ञानिक पाठ्यक्रम भी कह सकते हैं, क्योंकि यह बालक की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं पर आधारित होता है |
प्रश्न vi (f) पाठ्यक्रम में लैंगिक भेद-भाव ।
अथवा
लिंग-भेद ।
अथवा
पाठ्यक्रम निर्धारक तत्व के रूप में लिंग का प्रभाव ।
उत्तर-
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में अधिकांश पाठ्य पुस्तकों में लिंग आधारित भेद-भाव दिखाई देता है। विद्यालय जिसमें कई संस्कृति के विद्यार्थी होते हैं ये भी लिंग आधारित भेदभाव संस्थान की पाठ्य-पुस्तकों द्वारा निष्पत्ति परीक्षणों द्वारा कार्यक्रम में लैंगिक विभेदीकृत पाठ्यक्रम द्वारा दिखाई देता है।
प्रश्न vi (g) पाठ्यक्रम आधारित लिंग असमानता का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
"कुछ सांस्कृतिक विचारधाराएँ जैसे स्त्रियों को माँ की भूमिका अदा करनी है और पारिवारिक जिम्मेदारी जैसे घर, परिवार व बच्चों की देखभाल आदि। इसलिए बालिका वर्ग को पाठ्यक्रम के अंतर्गत उन शैक्षिक स्तरों का चुनाव करना चाहिए। जो आगे चलकर उनके व्यवसाय में गृह कार्यों की सुविधा हेतु अधिकाधिक छुट्टी का प्रावधान शामिल करता है।
प्रश्न vi (h) पाठ्यक्रम आधारित लिंग असमानता को दूर करने के सुझाव बताइए ।
उत्तर-
(i) गणितीय, वैज्ञानिक तथा टेक्नोलॉजी जैसे विषयों पर बालक समूह का आधिपत्य है, बालिकाओं को पाठ्यक्रम के इन विषयों को अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
(ii) सभी प्रशिक्षण एवं व्यावसायिक कोर्सों को अनिवार्य स्तर पर लागू किया जाना चाहिए।
प्रश्न vii (a) सम्पूर्ण समायोजन।
उत्तर-
विद्यालय में सभी प्रकार के बच्चों का प्रवेश, सभी के लिए समान पाठ्यक्रम, सभी को एक ही विधि से एक साथ पढ़ना लिखना, सभी की एक समान रूप से परीक्षा लेना और सभी का एक ही पैमाने पर मूल्यांकन करना और सभी को प्रमाण पत्र देना आदि ।
प्रश्न vii (b) पाठ्यचर्या विकास की प्रक्रिया के तत्त्व बताइए ।
उत्तर-
इसके चार प्रमुख तत्त्व हैं-
(1) शिक्षण उद्देश्य, (2) शिक्षण विधि, (3) परीक्षण, (4) पृष्ठ पोषण ।
प्रश्न vii (c) शिक्षण अधिगम प्रदान करने की विधि बताइए।
उत्तर-
शिक्षण अधिगम प्रदान करने की निम्नलिखित विधियाँ हैं
(1) व्याख्यान विधि, (2) परिचर्या विधि, (3) परियोजना विधि, (4) निर्देशन विधि |
प्रश्न vii (d) पाठ्यचर्या के मूल्यांकन के स्तर बताइए।
उत्तर-
पाठ्यचर्या के मूल्यांकन के तीन स्तर हैं-
(1) उद्देश्य, (2) गतिविधियाँ, (3) मूल्यांकन |
प्रश्न vii (e) पाठ्यचर्या विकास के तत्त्व बताइए ।
उत्तर-
पाठ्यचर्या विकास के निम्नलिखित तत्त्व हैं-
(1) आवश्यकताओं का विश्लेषण,
(2) उद्देश्यों का स्पष्टीकरण,
(3) आगत तत्वों का विश्लेषण,
(4) प्रक्रिया अभिकल्प तैयार करना,
(5) प्रारम्भिक जाँच।
प्रश्न vii (f) विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम।
अथवा
विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम क्या है?
उत्तर-
एरम्परागत उपागम के अंतर्गत विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम आता है जिससे पाठ्यक्रम के स्वरूप में विषय वस्तु को अधिक महत्त्व दिया जाता है। इसमें अध्यापक का शिक्षण पाठ्यक्रम तक ही सीमित रहता है। वह पाठ्यक्रम के अलावा छात्रों को कोई और ज्ञान देना उचित नहीं समझता है वह छात्र के केवल ज्ञान भण्डार को बढ़ाने पर ही ध्यान केंद्रित करता है, भले ही उस ज्ञान का छात्र के जीवन में कोई उपयोगिता हो या न हो।
प्रश्न vii (g) अनुशासन केंद्रित पाठ्यक्रम की परिभाषा बताइए ।
उत्तर--
वस्तुओं तथा घटनाओं के किसी विशिष्ट क्षेत्र सम्बन्धी ज्ञान के संगठन को अनुशासन कहा जाता है। इन वस्तुओं तथा घटनाओं के अन्तर्गत वे तथ्य, प्रदत्त, पर्यवेक्षण, अनुभूतियाँ आदि भी सम्मिलित रहती हैं जो उस ज्ञान के आधारभूत घटकों को निर्मित करते हैं। कोई ज्ञान किसी अनुशासन के क्षेत्र में आता है या नहीं, इसका निर्धारण करने के लिये आधारिक नियम एवं परिभाषाएँ निर्मित कर ली जाती हैं।
उत्तर-
(i) प्रत्येक अनुशासन की एक मान्य संरचना होती हैं।
(ii) उसकी अपनी विषय-वस्तु होती है तथा उसमें नवीन ज्ञान को समाहित करने ( अर्थात् उसके विस्तार क्षेत्र में वृद्धि करने, उसे और अच्छा बनाने, अधिक वैध बनाने) के सम्बन्ध में निश्चित नियम होते हैं !
(iii) प्रत्येक अनुशासन का अपना इतिहास एवं परम्पराएँ होती हैं तथा यही बातें उसकी संरचना करने तथा उसके नियमों के निधारण के लिये उत्तरदायी होती हैं।
(iv) प्रत्येक अनुशासन की अपनी अध्ययन एवं अनुसंधान विधियाँ होती हैं।
(v) प्रत्येक अनुशासन का अपना मूल्य एवं चिन्तन क्षेत्र होता है।
प्रश्न viii (b) अनुशासन केंद्रित पाठ्यक्रम की सीमाएँ बताइए ।
उत्तर-
(i) मानव ज्ञान के विशाल भण्डार तथा समय की सीमा को देखते हुए पाठ्यक्रम ज्ञान के सभी प्रमुख उप-खण्डों को समाहित कर सकना सम्भव नहीं है। अतः इसके दो विकल्प दिखाई पड़ते हैं। या तो चयन प्रक्रिया के माध्यम से कुछ उप-खण्डों को छोड़ दिया जाये और कुछ को सम्मिलित किया जाये अथवा उन्हें व्यापक क्षेत्रीय (मिश्रित) इकाइयों में व्यवस्थित किया जाये। स्पष्ट है कि अनुशासन- केन्द्रित आन्दोलन से पूर्व भी यही कार्य किया जा रहा था जिस पर इस आन्दोलन के कर्णधारों ने विषयों में छिछलापन लाने का दोषारोपण किया।
(ii) यह उपागम पाठ्यक्रम में पृथक-पृथक विषयों पर अधिक बल देता है। चूँकि विभिन्न विषयों के साथ-साथ सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का भी अपना महत्त्व है तथा सम्पूर्ण पाठ्यक्रम विभिन्न विषयों का केवल समूह ही नहीं होता है। अतः इस उपागम में सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पर केवल सतही ध्यान देने अथवा उसकी पूर्ण उपेक्षा हो जाने का भय है।
प्रश्न viii (c) पर्यावरण पर आधारित उपागम बताइए ।
उत्तर-
प्रत्येक व्यक्ति भौतिक, प्राकृतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण में रहता है। वह भौतिक जगत का एक भाग है। वह एक सामाजिक प्राणी है और उसे विरासत में एक संस्कृति होती है। वातावरण आधारित उपागम में मनोवैज्ञानिक सामाजिक और शैक्षिक महत्ता तो है ही साथ ही इसमें क्रिया आधारित उपागम भी शामिल है।
प्रश्न viii (c) पर्यावरण पर आधारित उपागम बताइए ।
उत्तर-
प्रत्येक व्यक्ति भौतिक, प्राकृतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण में रहता है। वह भौतिक जगत का एक भाग है। वह एक सामाजिक प्राणी है और उसे विरासत में एक संस्कृति होती है। वातावरण आधारित उपागम में मनोवैज्ञानिक सामाजिक और शैक्षिक महत्ता तो है ही साथ ही इसमें क्रिया आधारित उपागम भी शामिल है।
प्रश्न viii (d) व्यवहारवादी उपागम क्या है?
उत्तर-
व्यवहारवादी उपागम।
पाठ्यक्रम के इस उपागम का आधार व्यावहारिक मनोविज्ञान है। इसमें शैक्षिक उद्देश्यों पर अधिक बल देते हुए पाठ्यक्रम के प्रारूप को विकसित किया जाता है। छात्रों के अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन के रूप में उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है। इसे व्यवहार का व्यवहारवादी उपागम कहते हैं।
प्रश्न viii (e) दबे समिति ने प्राथमिक कक्षाओं के लिए भाषा में किन दक्षताओं को बताया है?
उत्तर-
v
न्यूनतम अधिगम स्तर निम्नलिखित हैं-
(1) सुनना,
(2) बोलना,
(3) पढ़ना,
(4) लिखना,
(5) समझना व अवबोध,
(6) कार्यात्मक व्याकरण,
( 7 ) स्व-अधिगम
( 8 ) भाषा प्रयोग,
(9) शब्दावली नियंत्रण |
(1) सुनना,
(2) बोलना,
(3) पढ़ना,
(4) लिखना,
(5) समझना व अवबोध,
(6) कार्यात्मक व्याकरण,
( 7 ) स्व-अधिगम
( 8 ) भाषा प्रयोग,
(9) शब्दावली नियंत्रण |
प्रश्न viii (f) न्यूनतम अधिगम स्तर का सूत्र बताइए ।
उत्तर-
न्यूनतम अधिगम स्तर = गुणवत्ता + समता ।
उत्तर-
न्यूनतम अधिगम स्तर = गुणवत्ता + समता ।
प्रश्न vili (g) न्यूनतम अधिगम स्तर किसे कहते हैं?
उत्तर-
प्रारम्भिक शिक्षा में सभी बच्चों द्वारा दक्षताओं को पारंगतता के स्तर तक प्राप्ति को न्यूनतम अधिगम स्तर (M.L.L.) कहते हैं।
प्रश्न ix (a) संरचनावादी उपागम।
उत्तर-
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अर्थ ऐसी शिक्षा से लगाया जाता है जो रटने से दूर जाती है। अच्छी व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए केवल पाठ्यक्रम में कुछ नवाचारों का समावेश करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि ज्ञान को भाँति प्रकार से समझना तथा उसे प्रदान करना ही संरचनावादी उपागम है ।
प्रश्न ix (b) क्रिया केंद्रित पाठ्यक्रम क्या है?
उत्तर-
जॉन डी.वी. के अनुसार, “क्रिया केंद्रित पाठ्यक्रम बालक की क्रियाओं की सतत् प्रभावित होने वाली धारा है जिससे व्यवस्थित विषयों में कोई व्यवधान नहीं आता तथा जो बालकों की रुचियों तथा अनुभूत व्यक्तित्व आवश्यकताओं से उदित होती है । "
प्रश्न ix (c) क्रिया- केंद्रित पाठ्यक्रम के गुण बताइए ।
उत्तर-
(i) यह बालक की मानसिक प्रवृत्तियों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। यह मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित होता है ।
(ii) छात्रों में शारीरिक श्रम के प्रति सकारात्मकता की भावना विकसित होती है।
प्रश्न ix (d) कार्य आधारित पाठ्यक्रम।
उत्तर-
कोठारी आयोग के अनुसार, “ कार्य आधारित इस पाठ्यक्रम में विभिन्न विषयों, क्रियाओं तथा कार्य को इस प्रकार से व्यवस्थित तथा संगठित किया जाता है कि छात्र निर्धारित शैक्षिक साध्यों तथा लक्ष्यों को प्राप्त कर सके। अतः इसे कार्य आधारित पाठ्यक्रम कहा जाता है । "
प्रश्न ix (e) अनुभव केंद्रित पाठ्यक्रम |
उत्तर- अनुभव केंद्रित पाठ्यक्रम उस पाठ्यक्रम को कहते हैं जिसमें बालक के विकास हेतु अनुभवों को विशेष महत्व दिया जाता है इससे बालक का सर्वांगीण विकास संभव है। नन महोदय के अनुसार, “पाठ्यक्रम में समस्त मानव जाति के अनुभवों को शामिल करना चाहिए ।"
प्रश्न ix (f) विषय केंद्रित पाठ्यक्रम के दो गुण लिखिए।
उत्तर-
(1) इसमें पाठ्यक्रम आयोजन, शिक्षण तथा मूल्यांकन में सुविधा रहती है, जबकि विषय विहीन संरचना को समझ पाना कठिन होता है।
(2) इसमें नवीन ज्ञान की खोज करने तथा तथ्यों को उपयोगी क्रम में व्यवस्थित करने में भी सुविधा होती है।
प्रश्न ix (g) विषय केंद्रित पाठ्यक्रम की सीमाएँ बताइए ।
उत्तर- (1) यह अपेक्षित व्यवहारगत उद्देश्यों को सीमित कर देता है।
(2) इसमें अधिगम - अनुभवों का विस्तार क्षेत्र सीमित हो जाता है।
(3) इसमें किसी नवीन अंतर्वस्तु को समाविष्ट करना कठिन होता है
प्रश्न ix (h) बाल केंद्रित पाठ्यक्रम की परिभाषा दीजिए ।
उत्तर- जेम्स. ली. के अनुसार, “छात्र केंद्रित पाठ्यक्रम वह है जो पूर्णतः और समय रूप सीखने वाले में निहित है । "
प्रश्न x (a) पाठ्यक्रम निरूपण हेतु उद्देश्य की आवश्यकता बताइए ।
उत्तर-
पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करना है। शिक्षा के उद्देश्य जीवन और समाज के उद्देश्यों के अनुकूल होते हैं तथा इनका निर्धारण व्यक्ति और समाज की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु किया जाता है। क्योंकि विभिन्न समाजों की आवश्यकताएं एवं आकांक्षाएँ अलग-अलग होती है।
प्रश्न x (b) पाठ्यक्रम संचालन क्या है?
उत्तर-
विभिन्न रूप से पाठ्यक्रम संचालन या कार्यान्वयन न केवल विभिन्न सैद्धांतिक विषयों की सामग्री के शिक्षण को संदर्भित करता है, बल्कि अध्ययन के प्रत्येक क्षेत्र में निर्धारित व्यावहारिक कार्य को भी करता है। शिक्षक शिक्षा प्रणाली की रीढ़ है क्योंकि यह स्कूली शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर पढ़ाने के लिए पेशेवर शिक्षण तैयार करती है। पाठ्यचर्या संचालन एक प्रणाली की सबसे महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है और यदि इसे शिक्षक के स्तर पर अच्छी तरह से शिक्षित किया जाता है तो यह गुणवत्तापूर्ण पेशेवर शिक्षण पैदा करेगा। वर्तमान अध्ययन में शोधकर्ता ने शिक्षक-शिक्षक द्वारा पाठ्यक्रम लेनदेन के कार्यान्वयन के लिए प्रश्नावली लागू करके पाठ्यक्रम लेनदेन का सर्वेक्षण करने का प्रयास किया था और साक्षात्कार और जांच सूची का उपयोग करके सत्यापन किया था और निष्कर्ष सर्वेक्षण निष्कर्षों के विरोधाभासी थे ।
प्रश्न x (b) पाठ्यक्रम संचालन क्या है?
उत्तर-
विभिन्न रूप से पाठ्यक्रम संचालन या कार्यान्वयन न केवल विभिन्न सैद्धांतिक विषयों की सामग्री के शिक्षण को संदर्भित करता है, बल्कि अध्ययन के प्रत्येक क्षेत्र में निर्धारित व्यावहारिक कार्य को भी करता है। शिक्षक शिक्षा प्रणाली की रीढ़ है क्योंकि यह स्कूली शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर पढ़ाने के लिए पेशेवर शिक्षण तैयार करती है। पाठ्यचर्या संचालन एक प्रणाली की सबसे महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है और यदि इसे शिक्षक के स्तर पर अच्छी तरह से शिक्षित किया जाता है तो यह गुणवत्तापूर्ण पेशेवर शिक्षण पैदा करेगा। वर्तमान अध्ययन में शोधकर्ता ने शिक्षक-शिक्षक द्वारा पाठ्यक्रम लेनदेन के कार्यान्वयन के लिए प्रश्नावली लागू करके पाठ्यक्रम लेनदेन का सर्वेक्षण करने का प्रयास किया था और साक्षात्कार और जांच सूची का उपयोग करके सत्यापन किया था और निष्कर्ष सर्वेक्षण निष्कर्षों के विरोधाभासी थे ।
प्रश्न x (c) कारकों (निर्धारक तत्वों) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले तत्वों को व्यक्तित्व निर्धारक तत्व कहते हैं । ये तत्व शारीरिक, बौद्धिक, रुचियों एवं अभिवृत्तियों पर आधारित होते हैं।
प्रश्न x (d) बाल केन्द्रित शिक्षा क्या हैं?
उत्तर-
बाल केन्द्रित शिक्षा का अर्थ है, बालक की रुचियों और क्षमताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रदान करना। बाल केन्द्रित शिक्षण में व्यक्तिगत शिक्षण को महत्त्व दिया जाता है। इसमें बालकों के जीवन की कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया जाता है।
प्रश्न x (c) ज्ञान की अवधारणा बताइए।
उत्तर-
ज्ञान की अवधारणा के संदर्भ में एक तथ्य और है कि ज्ञान केवल अनुभूति मात्र है। अनुभूति मात्र बाह्य स्वरूप ही होती है परंतु जब वस्तु के बाह्य स्वरूप को देखने के बाद हम उसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं तो यह स्थिति ज्ञान कहलाती है।
उत्तर-
ज्ञान की अवधारणा के संदर्भ में एक तथ्य और है कि ज्ञान केवल अनुभूति मात्र है। अनुभूति मात्र बाह्य स्वरूप ही होती है परंतु जब वस्तु के बाह्य स्वरूप को देखने के बाद हम उसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं तो यह स्थिति ज्ञान कहलाती है।
उत्तर-
ज्ञान के निम्नलिखित पाँच स्रोत हैं-
(a) इन्द्रिय अनुभव,
(b) साक्ष्य,
(c) तार्किक चिंतन,
(d) अंतःप्रज्ञावाद,
(e) सत्ता अधिकाधिक ज्ञान ।
प्रश्न x (g) ज्ञान के प्रकार बताइए ।
उत्तर-
ज्ञान के निम्नलिखित तीन प्रकार हैं-
(a) आगमनात्मक ज्ञान,
(b) प्रयोगमूलक ज्ञान,
(c) प्रागनुभव ज्ञान ।
प्रश्न x (h) ज्ञान प्राप्ति की विधियाँ बताइए ।
उत्तर-
प्रश्न x (i)
उत्तर-
ज्ञान प्राप्ति की निम्नलिखित विधियाँ हैं-
(a) विश्लेषणात्मक दर्शन,
ज्ञान प्राप्ति की निम्नलिखित विधियाँ हैं-
(a) विश्लेषणात्मक दर्शन,
(b) ज्ञान की वैयक्तिक अनुभव विधि,
(c) ज्ञान की अधिकारिता विधि,
(d) ज्ञान की निगमन तर्क विधि,
(e) ज्ञान की आगमन तर्क विधि,
(f) वैज्ञानिक जाँच-पड़ताल विधि |
प्रश्न x (i) ज्ञान व नॉलेज में अंतर बताइए।
उत्तर-
ज्ञान सत्य और असत्य होता है, जबकि 'नॉलेज' सत्य होता है। ज्ञान का स्वरूप विस्तृत होता है जबकि नॉलेज का क्षेत्र संकुचित है।
उत्तर-
ज्ञान सत्य और असत्य होता है, जबकि 'नॉलेज' सत्य होता है। ज्ञान का स्वरूप विस्तृत होता है जबकि नॉलेज का क्षेत्र संकुचित है।
प्रश्न x (j) ज्ञान व सूचना में समानता बताइए ।
उत्तर-
(i) ज्ञान और सूचना के प्रत्यय समान हैं।
(i) ज्ञान और सूचना का निष्कर्षण मूल आँकड़ों से होता है।
(ii) ज्ञान व सूचना दोनों की पहचान अवलोकन से होती है।
प्रश्न x (k) ज्ञान एवं सूचना के बीच दो अन्तर कीजिए।
उत्तर-
ज्ञान और सूचना में अंतर -
(i) ज्ञानेन्द्रियों से जो प्रत्यक्षीकरण तथा अनुभव होता है, उसे ज्ञान कहते हैं जबकि किसी वस्तु के विषय में जानकारी है उसे सूचना कहते हैं ।
(ii) ज्ञान सूचना के प्रवाह के परिणामस्वरूप प्राप्त होता है जबकि सूचना संदेशों के प्रवाह के परिणामस्वरूप प्राप्त होती है।
प्रश्न x (L) 'ज्ञान' का अर्थ बताइए।
उत्तर-
प्रज्ञा ज्ञाता और ज्ञेय के पारस्परिक संबंध को ज्ञान माना जाता है! प्रत्येक ज्ञान में एक ज्ञाता तथा एक जेय होता है और जब ज्ञाता का ज्ञेय के साथ इंद्रियों के मध्य में संपर्क होता है तो ज्ञेय का पदार्थ के संबंध में एक चेतना होती है जिसे 'ज्ञान' कहा जाता है। इस प्रकार ज्ञानेन्द्रियों से जो प्रत्यक्षीकरण तथा अनुभव होता है उसे ही ज्ञान कहा जाता है।
प्रश्न x (m.) पाठ्यक्रम निर्धारण के तत्त्व!
उत्तर-
पाठ्यक्रम के प्रमुख रूप से चार निर्धारक तत्त्व होते हैं जो इस प्रकार हैं-विषय अनुभव, कौशल तथा अभिवृत्तियाँ । पाठ्यक्रम में विविध विषयों, अनुभवों, कौशलों का समावेश होता है। अभिवृत्तियों को भी ठ्यक्रम के प्रारूप में शामिल किया जाता है।
प्रश्न x (n) पाठ्यक्रम का बहुभाषी पहलू!
उत्तर-
अनेक भाषाओं के ज्ञान से छात्र उनका प्रयोग आवश्यक स्थितियों में कर सकता है: जैसे - एक छात्र अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखता है तो वह जब भी उन छात्रों से वार्तालाप करता हैं जो अंग्रेजी जानते हैं तो अंग्रेजी भाषा के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान सरल एवं सहज रूप से हो जाता है। इस प्रकार उसका व्यक्तित्व प्रभावी रूप से विकसित होता है क्योंकि वह छात्र प्रत्येक कार्य को उचित रूप में सम्पन्न करने में भाषा का सफलतम प्रयोग करता है। इस प्रकार बहुभाषायी ज्ञान भी छात्रों के व्यक्तित्व के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
खण्ड-ब:
उत्तर-
अनेक भाषाओं के ज्ञान से छात्र उनका प्रयोग आवश्यक स्थितियों में कर सकता है: जैसे - एक छात्र अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखता है तो वह जब भी उन छात्रों से वार्तालाप करता हैं जो अंग्रेजी जानते हैं तो अंग्रेजी भाषा के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान सरल एवं सहज रूप से हो जाता है। इस प्रकार उसका व्यक्तित्व प्रभावी रूप से विकसित होता है क्योंकि वह छात्र प्रत्येक कार्य को उचित रूप में सम्पन्न करने में भाषा का सफलतम प्रयोग करता है। इस प्रकार बहुभाषायी ज्ञान भी छात्रों के व्यक्तित्व के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
खण्ड-ब:
लघु उत्तरीय प्रश्न
(Section-B: Short Answer Type Questions )
निर्देश : इस खण्ड में प्रश्न संख्या 2 से 6 लघु उत्तरीय प्रश्न हैं । परीक्षार्थियों को सभी पाँच प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न के लिए 8 अंक निर्धारित हैं। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए । (8 × 5 = 40 अंक)
प्रश्न 2 (i) भावात्मक पक्ष के उद्देश्य एवं प्रकार बताइए।
उत्तर-
ब्लू द्वारा प्रस्तुत वर्गीकरण में भावात्मक पक्ष के उद्देश्य को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है-
(i) आग्रहण या प्राप्ति,
(ii) अनुक्रिया,
(iii) अनुमूल्यन,
(iv) व्यवस्थापन,
(v) मूल्य का लक्षण वर्णन ।
(i) आग्रहण या प्राप्ति -
यह भावात्मक पक्ष का निम्नतम अर्थात् आरम्भिक वर्ग है। इस स्तर पर सीखने वाला उत्तेजक के प्रति संवेदनशीलता प्रदर्शित करता है, इस उद्देश्य के तीन स्तर होते हैं-
(i) आग्रहण या प्राप्ति,
(ii) अनुक्रिया,
(iii) अनुमूल्यन,
(iv) व्यवस्थापन,
(v) मूल्य का लक्षण वर्णन ।
(i) आग्रहण या प्राप्ति -
यह भावात्मक पक्ष का निम्नतम अर्थात् आरम्भिक वर्ग है। इस स्तर पर सीखने वाला उत्तेजक के प्रति संवेदनशीलता प्रदर्शित करता है, इस उद्देश्य के तीन स्तर होते हैं-
(i) अभिज्ञान.
(ii) प्राप्त करने की सहमति,
(iii) नियन्त्रित अथवा चयनित ध्यान ।
प्रश्न 2 (ii) सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ज्ञान में अन्तर बताइए।
उत्तर -
सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ज्ञान में निम्न अन्तर है-
सैद्धान्तिक ज्ञान (Theoretical Knowledge) स्वयं प्रत्यक्ष की भाँति समझा जाता है । सिद्धान्त जब समझ लिए जाते है, सत्य पहचान लिए जाते हैं फिर उन्हें निरीक्षण, अनुभव या प्रयोग द्वारा प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार से ज्ञान को स्वतः सिद्ध या प्रमाणित मान लिया जाता है। इस प्रकार के ज्ञान में तर्क द्वारा तथ्यों को संगठित कर दिया जाता है तथा बुद्धि इसे की सहायता से प्राप्त कर लेती है।
व्यावहारिक ज्ञान (Practical Knowledge) प्रयोग द्वारा प्राप्त होता है। डीवी के अनुसार, ज्ञान की प्रक्रिया एक प्रयास एवं समझ (Trying and Undergoing) की प्रक्रिया है. -एक विचार का अभ्यास में प्रयास करना एवं ऐसे प्रयास के परिणामस्वरूप जो फल प्राप्त होते हैं उनसे सीखता है।
(ii) प्राप्त करने की सहमति,
(iii) नियन्त्रित अथवा चयनित ध्यान ।
प्रश्न 2 (ii) सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ज्ञान में अन्तर बताइए।
उत्तर -
सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ज्ञान में निम्न अन्तर है-
सैद्धान्तिक ज्ञान (Theoretical Knowledge) स्वयं प्रत्यक्ष की भाँति समझा जाता है । सिद्धान्त जब समझ लिए जाते है, सत्य पहचान लिए जाते हैं फिर उन्हें निरीक्षण, अनुभव या प्रयोग द्वारा प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार से ज्ञान को स्वतः सिद्ध या प्रमाणित मान लिया जाता है। इस प्रकार के ज्ञान में तर्क द्वारा तथ्यों को संगठित कर दिया जाता है तथा बुद्धि इसे की सहायता से प्राप्त कर लेती है।
व्यावहारिक ज्ञान (Practical Knowledge) प्रयोग द्वारा प्राप्त होता है। डीवी के अनुसार, ज्ञान की प्रक्रिया एक प्रयास एवं समझ (Trying and Undergoing) की प्रक्रिया है. -एक विचार का अभ्यास में प्रयास करना एवं ऐसे प्रयास के परिणामस्वरूप जो फल प्राप्त होते हैं उनसे सीखता है।
VBSPU B.Ed 2nd YEAR NOTES
ज्ञान एवं पाठ्यक्रम VBSPU 201 B.Ed
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय बी.एड
Veer Bhadur Singh Purvanchal University B.Ed.
| Knowledge and Curriculum
gyan evam pathyakram b.ed first year